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गुम होता जा रहा कुओं का अस्तित्व।।।।

गुम होता जा रहा कुओं का अस्तित्व

पिहानी /हरदोई

ममता वर्मा इंडियन टीवी न्यूज़
हरदोई

 

 

 

 

परिवर्तन के इस दौर में कुएं और प्यासे के संबंधों की दूरी समाप्त सी हो रही है। आलम यह है कि कुओं का अस्तित्व ही गुम होता जा रहा है। अब तो सामाजिक संस्कारों के मौके पर ढूंढने से भी कुएं नहीं मिलते। यह तो गनीमत है कि कुछ धार्मिक स्थलों पर कुएं बचे हैं

 

 

 

 

 

 

अन्यथा आने वाली पीढ़ी तो किताबों में ही इसे पढ़ती। हालांकि गायत्री प्रज्ञा पीठ के प्रदीप राठौर व उनकी टीम के सदस्य कुओं को धरोहर मानते हैं। इसके अस्तित्व को बचाने का जैसे बीड़ा उठा लिया है। वे घूम-घूमकर लोगों के बीच ये संदेश फैला रहे हैं कि कुएं के जल को पूर्वजों ने इतना पवित्र माना था कि तमाम धार्मिक अनुष्ठान इसी के जल से होते थे। कुआं खुदवाना धर्म और शान की बात समझी जाती थी। पूर्वजों की धरोहर को अक्षुण्ण रखना हमारा पुनीत कर्तव्य बनता है।

 

 

 

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कुएं ने बुना था सामाजिक संबंधों का ताना बाना

जीवन के लिये पानी की अनिवार्यता के कारण मानव सभ्यता का विकास नदियों के किनारे हुआ। काल चक्र में नदियों से होने वाली परेशानियों के कारण लोगों को पानी के अन्य विकल्प की आवश्यकता हुई और इसी आवश्यकता ने एक आविष्कार को जन्म दिया जो कुआं कहलाया। उस जमाने में धरती का सीना चीरकर पानी निकालना आसान नहीं था। कुएं सीमित संख्या में थे। जहां कुएं थे वहीं लोग बसते गये संबंध बढ़ता गया और समाज का निर्माण होता गया।

 

 

 

 

 

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धर्म और शान की बात समझी जाती थी कुएं खुदवाना

कुएं खुदवाना धर्म और शान की बात समझाी जाती थी। किसने कितने कुएं खुदवाये सामाजिक प्रतिष्ठा में इसे भी जोड़ा जाता था। कहा जाता है कि कुएं खोदने के लिये मजदूर मजदूरी नहीं लेते थे। कुआं खुदने के बाद यज्ञ आयोजन के माध्यम से पानी की देवी कमला देवी को अधिष्ठापित किया जाता था। लोग फलां बाबू के कुएं के नाम से कुआं को जानते थे। इस प्रकार लागों का नाम चलता था जो शान की बात समझी जाती थी।

 

 

 

 

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कई प्रकार के धार्मिक अनुष्ठानों के आता था काम

कुआं सिर्फ पानी पीने के लिये ही नहीं कई प्रकार के धार्मिक अनुष्ठानों के काम भी आता था। जिसकी जरूरत आज भी होती है। पूजा पाठ के लिये कुएं का जल ही पवित्र माना जाता है। शादी ब्याह के मौके पर कुएं पर कई प्रकार के विधान निपटाये जाते हैं। गृह प्रवेश और भूमि शुद्धि के लिये कई कुओं का पानी जमा किया जाता है।

 

 

 

 

 

 

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सामाजिक अनुशासन में थी अहम भूमिका

कुएं की भूमिका सामाजिक अनुशासन को कायम रखने में अहम थी। अगर समाज में कोई बड़ी गलती कर बैठता तो पंचायत के माध्यम से उसका पानी ही बंद कर दिया जाता था। इस तरह के फैसले बड़ी गलतियों में लिये जाते थे। पानी बंद होने का मतलब था उस व्यक्ति का कुएं पर जाना बंद जिसका पानी बंद किया गया है। अब पानी के बिना काम कैसे चलेगा इस बात पर दोषी व्यक्ति अपनी गलती कबूल करता और पश्चाताप करता तब उसका पानी चालू किया जाता था। पानी बंद होने के डर से समाज में इस तरह की गलती करने से पहले लोग हजार बार सोचते थे।

 

 

 

 

 

 

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कुआं नहीं मिटा मिट गया सामाजिक सह अस्तित्व

बदलते दौर में कुओं का अस्तित्व समाप्त सा हो गया है। कुआं जहां सामाजिक सह अस्तित्व का परिचायक था। कई तरह के सामाजिक सरोकारों से जुड़े होने के कारण लोग इसे समाज की प्रतिष्ठा मानते थे।

 

 

 

 

 

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कहते हैं बुजुर्ग

कस्बे के बुजुर्ग नरवीर मिश्रा कहते हैं कि उपरोक्त बातों के अलावा कुआं पानी के बचत का अच्छा माध्यम है। चापाकल की तरह इसमें पानी की बर्बादी नहीं होती है। सबसे बड़ी बात यह कि इसका पानी स्वच्छ होता है। बताया कि पानी निकालने के लिये जब कुएं में बाल्टी डाला जाता है तो पानी में हिलोरे उठती है जिससे कई तरह के जीवाणुओं का खात्मा हो जाता है। वहीं सूर्य की किरणें भी कुएं के अंदर पड़ती है जो कि पानी को शुद्ध रखने में काफी कारगर है।

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